सुरती खा के फुर्ती आये, जोश भरे दारु,
कैसे खुद को सुधारुं.
मन मेरा तभी हो चैतन्य, जब दम सुल्फे के मारूं,
कैसे खुद को सुधारुं.
प्राण मेरे गुटके में अटके, चूना लगे चारू,
कैसे खुद को सुधारुं.
आठ पेग पी ऐसे चलूँ, चले जैसे कंगारूं,
कैसे खुद को सुधारुं.
कभी कलाकार न बना, रहा सदा आडू,
कैसे खुद को सुधारुं.
नशे को बेचे बोरिया बिस्तर, बिक गया झाडू,
कैसे खुद को सुधारुं.
इस खातिर घर गिरवी रखा, कैसे कर्ज उतारूँ,
कैसे खुद को सुधारुं.
गल गए किडनी लीवर, अंत अपना विचारू,
कैसे खुद को सुधारुं.
लगा घुन्न, चेतना सुन्न, सदा शून्य में निहारूं,
कैसे खुद को सुधारुं.
नशे ने नहीं है सुख, न शेखी बघारुं,
कैसे खुद को सुधारुं.
मुझसे सबक ले दुनिया, न पिए कभी दारु,
कैसे खुद को सुधारुं.