न पव्वा, न अद्धा, न पौने हैं,
ये नेता कितने घिनौने है.
उस दिन किसी नेता से, मिला एक रंडी का दलाल,
उस दिन से मिट गया उसमे, उसके होने का मलाल.
उसने ये सच जाना, वो तो फिर भी गैरतमंद है,
नेता के धंधे में तो, कोठे से भी ज्यादा गंद है.
एक दिन शमशान में, खा रहा था मुर्दा नोच कर,
पूछा तो “मैं पिशाच हूँ”, बोला वो कुछ सोच कर.
वहीं एक ताज़ी लाश थी, उड़ता था कफ़न लहरा कर,
पूछा इसे कब खाओगे, तो बोला वो कुछ घबरा कर.
क्या तुम मदहोश हो, या कुछ ज्यादा पी ली है,
ये नेता की लाश है, मेरे लिए भी ज़हरीली है.
एक नेता एक वृद्ध को ले, पहुंचा कसाई के धाम था,
बोला ये मेरा बाप है, नहीं मेरे अब किसी काम का.
कहो क्या इसके दाम दोगे, फिर जिंदा रखो या मुर्दा,
बेच दो इसकी चाहे तुम, खाल, हड्डियां, लीवर, गुर्दा.
इनको चुन के भारतवासी पत्थर पे सर फोड़ेगा,
जो बाप को भी बेच आया, वो देश को क्या छोड़ेगा.
इनके आगे शैतान के, कारनामे कितने बौने हैं,
ये नेता कितने घिनौने है.
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