भारत का बुद्धिजीवी

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

लोग हंसें, तंज कसें, नित धिक्कारे ओ दुत्कारे,

ये चिकना घड़ा, संयमी बड़ा, न हिम्मत हारे.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

न समाजवादी, न पूंजीवादी, मैं अवसरवादी,

दफ्तर में जब काम पड़े तो मैं अफ्सरवादी.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

सब सोचें मैं भारत उदय के सपने नित देखूं,

मूढ़ हैं साले, मैं केवल अपना हित देखूं.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

जब जाबर झुकने को बोले, मैं लेट जाऊं,

कमजोर को मैं डंडा मारूं, बेंत लगाऊं.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

पब्लिक में मैं सामजिक समता का हामी,

निजी जीवन में मुझसे बड़ा नहीं हरामी.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

व्यवस्था को बदल डालो मैं सबको डांटू,

सत्ताधीशों के संग बैठा उनके तलुए चाटूं.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझे परजीवी.

जान बूझ के आग चढाऊं काठ की हांडी,

मैं संसार का सबसे बड़ा धूर्त, पाखंडी.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

मिडिया, कालेज, NGO, घेरे सारे मंच,

डटा रहूँगा जब तक चले मेरा प्रपंच.

मैं भारत का बुद्धिजीवी, सब समझे मुझको परजीवी.

Published in: on अप्रैल 1, 2010 at 3:22 अपराह्न  टिप्पणी करे